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Thursday, August 30, 2018

" पहली झलक के किस्से "

आंखे फकत ढूंढती रहती इश्क हर गलियारों में
चार दिवारी घुट कर रहती बन्द एक आशियाने में
मुस्कुराकर तालीम दे गई हरकते हमारी देख कर
इश्क रश्म समझा हमने परवानों को देख कर
आंखो में नुर झलकती जैसे ईद की मेहताब है
लफ्ज़ होठो से निकलते जैसे शरबती शराब है
किस्मत की शाम को जब आंखो से दीदार हुआ
सबने आंखें सैकी उसपर फिर शब्दों से प्रहार हुआ
चमक रही थी आंखे उनकी आंसुओ के सैलाब से
छलक पड़ी अब उनके गालों पर बूंदे शर्मसार से
चार दिवारी फिर सिमट गई बदले का विचार हुआ
इंतजार में अब तक सेहमा इश्क फिर दुश्वार हुआ ।
झलक,आंखे,eyes,love,first
झलक

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