राह पे बैठा पत्थर आवाज कर रहा है
गुनगुना लफ्जो से झुटलाया न करो
आसमान पैरों से लगी पड़ी है
कलशन अदाओं से गिराया न करो
वादियों की खूबसूरती पसरी पड़ी है
नैनन के नूर से रिझाया न करो
वक़्त का अंदेशा रुक सा गया है
जादुई मुस्कान मुस्कुराया न करो
सांसों की इल्तिज़ा अटक जाती है
धड़कने दिल की तेज चलाया न करो
पाखंडी जहां में कई सारे है