खुदकुशी ये एक बड़ा रहस्यमय शब्द है।कौन जाने किसके मन में चल रहा हो एक भय,एक तड़प,एक परेशानी,एक कमी,एक नहीं अनेक भी हो सकते है।खुद को कोसती खुद की सोच।खुद को अशहाय पाती ये सोच।
लोगो के बाते जब चुभने लगती है,तानो की तरह कानों में खटकने लगती है।केवल अल्फ़ाज़ नहीं चुप्पी भी कभी कभी क्यी जान ले लेती है।हम समझ ही नहीं पाते कब,कैसे,कौन सी हरकत से अपना कोई बुरा मान जाए।ये हमारी भी गलती नहीं है अगर इसे अनजाने में लिया जाए तो।दरअसल दोष खुद की सोच में होती है हम हर जगह खुद को दौड़ में लगाते है।खुद को खुद के लिए किसी पहर समय निकाल कर चार - पांच अच्छी बाते कर ही लेनी चाहिए।हा मालूम कई और भी काम है लेकिन अब आप खुद भी अन्य के तरह अगर मशरूफ रहेंगे तो खाक समझ पाएंगे खुद को।
एक तो जिंदगी की भाग दौड़ में हम और आप सालो से दौड़ रहे है। किसी पल ठहर जाना मानो समय को रोक लेना सा प्रतीत होगा। खुद को लगेगा मानो अकेलेपन का छुटकारा मिल रहा है।अपने काम को और खुद कई सालो से तो देख ही रहे हो।किसी रोज क्यू न मेरी तरह तुम भी पूरे दिन सिर्फ देखो , क्या हो रहा है,कौन क्या कर रहा है,कौन खुश है तो किस बात पर,दुख तो हर एक को है इसके प्रकार देखना असंभव सा है मानो।
लोगो के बाते जब चुभने लगती है,तानो की तरह कानों में खटकने लगती है।केवल अल्फ़ाज़ नहीं चुप्पी भी कभी कभी क्यी जान ले लेती है।हम समझ ही नहीं पाते कब,कैसे,कौन सी हरकत से अपना कोई बुरा मान जाए।ये हमारी भी गलती नहीं है अगर इसे अनजाने में लिया जाए तो।दरअसल दोष खुद की सोच में होती है हम हर जगह खुद को दौड़ में लगाते है।खुद को खुद के लिए किसी पहर समय निकाल कर चार - पांच अच्छी बाते कर ही लेनी चाहिए।हा मालूम कई और भी काम है लेकिन अब आप खुद भी अन्य के तरह अगर मशरूफ रहेंगे तो खाक समझ पाएंगे खुद को।
एक तो जिंदगी की भाग दौड़ में हम और आप सालो से दौड़ रहे है। किसी पल ठहर जाना मानो समय को रोक लेना सा प्रतीत होगा। खुद को लगेगा मानो अकेलेपन का छुटकारा मिल रहा है।अपने काम को और खुद कई सालो से तो देख ही रहे हो।किसी रोज क्यू न मेरी तरह तुम भी पूरे दिन सिर्फ देखो , क्या हो रहा है,कौन क्या कर रहा है,कौन खुश है तो किस बात पर,दुख तो हर एक को है इसके प्रकार देखना असंभव सा है मानो।
जीवन से खुशियों को निचोड़ते रहो , चाहे वो किसी गंदी जगह के गहराई में भी क्यू न हो। इन सब से मानो तो कुछ नहीं होगा , यदि कर लिए तो मन को एक आंतरिक ज्ञान और प्रसन्नता की अनुभूति होगी।
खुदकुशी की बात करे तो ये बेहद दुखद और पेचीदा शब्द है। इसके सुनने मात्र से हमारे कई सुन्न हो जाते है।मानो मुख से कोई बुरी बात कह दी हो।कौचिंग में आज कई बच्चे या कई बड़े भी जाते है चाहे वो सिविल सर्विसेस की परीक्षाएं हो या कॉलेज में दाखिले की प्रवेश परीक्षाएं। लोग जी जान से मेहनत करते है अपने को हर दूसरे श्रेष्ठतम बनाने में।इसमें ऐसा लाजमी है कि कोई न कोई पीछे जरूर रहेगा। इसमें निराशा की मुझे तो कोई भी बात नहीं नजर आती। जब आप इसमें चयनित लोगो की संख्या जानकर भी इसकी पढ़ाई पर डटे रहे तो ये तो जिंदगी है इससे क्यू हार मानना । ये तो आपकी अपनी है और इसमें पूरा एकाधिकार आपका एक मात्र है,आप इसे किसी के हवाले तो के सकते है लेकिन इस नायाब जिंदगी को खो कर क्या मिलेगा।आप जीवित रह कर ऐसे काम कर सकते है जो आपने अपनी जिंदगी के वो हसीन बचपन के दिनों में सोचा करते थे।वो दिनों की नायाब और उच्च सोच शायद उम्र के साथ तुच्छ होती जाती है।
हा आपने अपनी जिम्मेदारियों और कर्तव्यों को भी सही अंजाम नहीं दिया । कईयों को दुख दिया अब पछता रहे हो।कुछ करने का ना हो मन में।आप जानते नहीं शायद इससे कुछ खास फर्क नहीं पड़ेगा उनके जीवन में सिवाय आपके खलिश और सूनेपन के।बहरहाल आप चाहे तो कुछ नया कर सकते है , नजरिया बदल कुछ बेहतरीन भी कर सकते है जिसकी उम्मीद भी आपने अपने सपने में किया हो।ये मन की सोच जो है बड़ी सोचनीय विषय है इसे उच्च कोटि के विषय सोचने के लिए,आपको खुद ही तैयार करना होगा।ये आपसे ही प्रेरित होती है इसे कुछ अच्छा सिखाए,फिजूल सिखाने के लिए कई जबाज बैठे है।
खुदकुशी की खयालात अंदर ही अंदर मानो व्यक्ति को खाती रहती है।दर्द बिना चोट की लगती है और इसी दर्द से भूख भी मिट जाती है।नींद पता नहीं याद ही नहीं आती ।ऐसी भयंकर बीमारी है,उपरोक्त एक साधारण लक्षण है ,ये कभी कदार घातक भी ही जाता है। इन्हीं दर्दो को सेह सेह कर वो प्रताड़ना में बेहक खुद की मानो आहुति दे देता है कि अब और नहीं।
ये व्यक्ति की खुद की उत्पन्न एक सोच ही है जो ये सारा कारनामा करवा देती है ।
खुदकुशी की खयालात अंदर ही अंदर मानो व्यक्ति को खाती रहती है।दर्द बिना चोट की लगती है और इसी दर्द से भूख भी मिट जाती है।नींद पता नहीं याद ही नहीं आती ।ऐसी भयंकर बीमारी है,उपरोक्त एक साधारण लक्षण है ,ये कभी कदार घातक भी ही जाता है। इन्हीं दर्दो को सेह सेह कर वो प्रताड़ना में बेहक खुद की मानो आहुति दे देता है कि अब और नहीं।
ये व्यक्ति की खुद की उत्पन्न एक सोच ही है जो ये सारा कारनामा करवा देती है ।
आप यदि समाज के लायक नहीं समझते अपने आप को तो योगी बन कर या नई चीजों की तलाश में लग जाए।दुनिया में इतनी चीजे है इन सारी नीच चीजों से उपर।पैसे का खेल नहीं होता हर जगह,कभी कभी मन में इतनी खुशी व्याप्त हो जाती है कि वो अशहनिय हो जाती है,उसके बाद आपको अपनी जिंदगी से और कुछ नहीं चाहिए रहता है।
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