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Thursday, September 06, 2018

कुछ मन में तो है, मगर लिखूं कैसे...

कुछ मन में तो है, मगर लिखूं कैसे

छुपाई हर पहर की चुभन, कहू कैसे।

तुम गायब रहते हो किधर, उस पहर
सारी बाते कर के मैं,ए मन तुम करते नहीं सहर।

लोगो में होड़ मची है,लूट के खजाने की
वो न समझे, जो हम समझे बात मयखाने की।

देखे नज़्म कई पढ़े जा रहे, हर एक चौराहों पर
जेहन से निकले जो कह दिए, रो पड़ते वो बाहों पर।

मगर कहूं कैसे, गुम होने के उनके चुभन में हूं
जो तू न समझे लफ्ज़ तो फिर मस्त मग्न में हूं।

आंखो से डर लगता है, लफ्जो से मन लगता है
जो कुछ नहीं लगता, भ्रम में बस अपना लगता है।

यादों में जो आते हो ,बिन बुलाए तपाक से
आंखे खुले नजर आओ, ये काम करो तड़ाक से।

हम न ठहरे ख़यालो में, जादू इस कदर बरसा दो
ए मालिक न हो मुकम्मल,तो सजदे में बारिश बरसा दो।


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