The Hub Of psycho Words...

test

Breaking

Post Top Ad

Your Ad Spot

Thursday, February 22, 2018

" न जाने कितनो का हाथ वही "

निर्मम सिमट सिकुड़ वो सोया था
अंधेरे चौराहेे चौखट पे वो खोया था
चादर ओढ़े सिर छुपाए, पांव फिर भी निकली थी
सन सनाती हवा चली पैरो को छू, निगली थी
कांप गए बदन मेरे देख वो एहसास
क्या बीती होगी उसपर जब टूटे हो जज़्बात
मन न माना जी मचला चला पूछने बात 
देख, फिर रह गया ये मेरे मन की बात
क्यों बैठे हो ,क्या हुआ है , कहा से आए हो
कहा ना एक शब्द, पर समझ गया क्यों है वो स्तब्ध
शायद भूखा था,आंखे बन्द कर रो रहा था
घूट घूट कर अंदर ही अंदर खुद को खो  रहा था
आंखे नम रूखे बदन ,सिर पर थकान
मानो था सालो से बड़ा परेशान
पुरानी मैली धोती, कमीज़ गंदी सी लिए
शायद जिम्मेवारियां सीने में थे दबा लिए
 न जाने कितनों का हाथ वहीं
शायद बेटे का, पति का, नहीं नहीं
शायद पिता का वो हकदार था
घर कैसे जाऊं ये सोच शायद सौ बार था
घर को क्या ले जाऊं ये सोच वो हैरान था
काम की तलाश में शायद भटका वो इंसान था
शायद वो अवाम दुनिया से अंजान था
ओह! नहीं वो अपने हिंदुस्तान का इंसान था।



                                        ¶कुणाल प्रशांत
Father,work of father, load,tense,
Family

Post Top Ad

Your Ad Spot

MAIN MENU